दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहरों में बैठे मीडिया के धुरंधरों को बिहार का बेहतर होना बड़ा रोमांटिक लगता है और उनके लिए TRP के अलावा इसके और भी फायदे हैं| बिहार की so-called बेहतरी बड़े शहरों में safety की एक फीलिंग देती है| कुछ वैसे ही जैसे अमरीका वालों को पाकिस्तान के stable होने पर बेहतर नींद मयस्सर होती है|
घुप्प अँधेरे में किसी के दिया जला देने पर जैसा शोर मचता हो कुछ वैसा ही नीतीश की सरकार के साथ बिहार में हो रहा है| और शोर बड़े longlasting हैं क्यूंकि इंडियन मीडिया की चमत्कारों में जबरदस्त रूचि है| बिहार में बीते पांच सालों में जो हुआ है वह निश्चित तौर पर चमत्कार है: लालू के बिहार के लिए, न मेरे लिए और न ही सामान्य बिहार के लिए| किसी भी दूसरे राज्य के लिए ये सब किया-धरा शायद सामान्य की श्रेणी में भी न आये| मैं नीतीश कुमार का आलोचक तो नहीं पर देश के नेताओं की अदूरदर्शिता का अभ्यस्त हूँ| यह दुःख की बात है कि डेमोक्रेसी के इतने लम्बे नाटक में इस देश ने ऐसे बहुत कम किरदार देखे हैं जो चुनाव की जीत और मीडिया की प्रीत के आगे सोच पाते हों| मुझे डर है की नीतीश कुमार भी उसी बहुमत का हिस्सा न बन जाएँ|
कहाँ है ये नया बिहार?
अपने एक वर्ष के बिहार प्रवास में मैंने उस बिहार को ढूँढने की बहुत कोशिश जो आजकल अखबारों में और टीवी पर दिखने लगा है, पर मुझे मिला वही पुराना लालू का बिहार minus अपराध और भय| आज भी बिहार में सडकें और फसलें इन्द्र देवता की कृपा के भरोसे हैं: कहीं थोड़ी बहुत अच्छी सडकें हैं भी तो अनाज सुखाने और बैठक लगाने के काम आती हैं| राजधानी पटना में सड़कों का हाल जो था कमोबेश वही है, हाँ आजकल खैनी मसलते हुए पुलिसवाले ज्यादा नज़र आते हैं| बिहार की सड़कों पर दो चार दिन सफ़र करें तो आपको ये भी पता चलेगा कि सडकें अच्छी हो तो इससे मवेशियों और पैदल चलने वालों को कितनी सुविधा होती है और सडकों पर गाड़ियों के चलने से उन्हें कितनी असुविधा होती है | इन्ही बातों को ध्यान में रखते हुए माननीय लालू जी ने अपने कार्यकाल में गाडी वालों पर रंगदारी टैक्स का प्रचलन शुरू किया था| विश्वास करिए मेरा, आज भी बिहार की सड़कों पर कई लालू कई रूपों में नज़र आते हैं|
ए शिवानी! ये कैसी राजधानी?
राजधानी पटना में FM channels तो खूब व्यवसाय कर रहे हैं पर उनके prime time के anchors बड़े confused रहते हैं कि सुनने वालों को ये बताएं कि जाम कहाँ है या फिर ये कि कहाँ नहीं है| चूंकि VIPs के लिए सड़क खाली कर दी जाती है तो सब ठीक हीं है| बाकी शहरों का हाल बता पाना मुमकिन नहीं है तो मैं अगले मुद्दे पर चलता हूँ| माहौल आज भी लालू एरा का बना हुआ कि चूंकि शहर में रहने वाला हर आदमी गरीब है अतएव तरजीह सिर्फ उन्ही की सुविधाओं को दी जायेगी| रिक्शे, shared ऑटो और भीड़ भरी बसों से आप सफ़र नहीं कर पाएं तो औने-पौने दामों पर taxi और reserved ऑटो आपको ढूँढने पर मिल सकते हैं| पूरे शहर में रेड lights काम नहीं करतीं हैं पर traffic को हाथ देकर कण्ट्रोल करने वाले आपको हर कहीं मिल जायेंगे| ये एकमात्र सिटी है पूरे विश्व में जहाँ traffic control का काम PPP (Public Private Partnership) से चल रहा है| रेलवे स्टेशन और एअरपोर्ट में competition इस बात का है कि कौन ज्यादा substandard है देश के अन्य शहरों के मुकाबले|
कराहती शिक्षा व्यवस्था
शिक्षा व्यवस्था इतनी लचर है कि इसे अशिक्षा व्यवस्था कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी| स्कूलों में मास्टर जी आज भी सिर्फ हाजिरी बनाने ही आते हैं, अंतर इतना है कि जो काम पहले घर बैठे हो जाता था अब उसके लिए उन्हें आना पड़ता है| 'सरकार हर महीने पगार देकर जो एहसान करती है उसके लिए इतना तो बनता है भाई|' tution के मास्टर गाँव-गाँव में रोज़ पढ़ाने के नाम पर धंधा चला रहे हैं| क्या पढ़ा रहे हैं और कैसे पढ़ा रहे हैं इस तक बात पहुँचने में एक अरसा लग जाएगा| कॉलेज तो बस admission और डिग्री के लिए हैं| परीक्षाओं में खुल्लमखुल्ला नक़ल तो बंद हो गयी है पर असल माहौल अब भी बरक़रार है| छात्र कॉलेज जाते नहीं प्रोफेसर पढ़ाते नहीं| हाँ, graduation क़ी डिग्री में अब पांच साल क़ी बजाये साढ़े तीन साल ही लगते हैं| Higher education के लिए तो बिहार से बाहर जाना ही एकमात्र विकल्प है|
कमजोर प्रशासनिक मैनेजमेंट
जो लोग नीतीश कुमार के प्रधानमंत्री बनने क़ी बात करते हैं वो ये भूल जाते हैं कि नीतीश कुमार रेल मंत्री रह चुके हैं| अगर उनका नेतृत्व इतना ही कुशल और सक्षम था तो प्रधानमंत्री क़ी कुर्सी का रास्ता सीधा वहीँ से जाता था| बिहार का byepass क्यूँ? बिहार में अब तक NDA की सरकार ने जो किया है वो करना एक elected govt के लिए औपचारिकता मात्र है| अब यहाँ से अगर आगे बिहार को एक विकसित राज्य बनाने में नीतीश कुमार सफल होंगे तो उनके नेतृत्व और व्यक्तित्व को ऐतिहासिक मायने मिलने चाहिए| दुर्भाग्यवश सरकारी policy अब तक तो vote बैंक से development तक नहीं पहुँच पायी है|
जोर वाहवाही लूटने पर न हो
जब लोगों का living standard पिछड़े अफ़्रीकी देशों की याद दिलाता हो और औद्योगीकरण शून्येतर हो तो जोर infrastructure के विकास पर और सख्त सुधारों पर होना चाहिए, मीडिया को लुभाने वाले विधेयकों और मसीहाई स्कीमों पर नहीं| जब ग्लोब के दूसरे हिस्से बुल्लेट ट्रेन के पीछे लगे हों तो गाँव की लड़कियों में साइकिल बाँट कर खुश होना cheap लगता है| जब देश के दूसरे राज्य Information Technology और industrialization के दम पर दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहे हों तो किसानों के लिए बीज-खाद का राग अलापना बंद होना चाहिए| किसान-किसान के गीत गाकर आप देश की communist मीडिया को तो रिझा लेंगे पर दुनिया के कोने कोने में जा बसे युवा talent को न तो बुला पायेंगे और न जाने से रोक पायेंगे| पीठ ठोंकने वाली मीडिया और सरकार ये समझे कि मेधा का पलायन money का पलायन है|
नीतीश कुमार की प्रशंसा अगर TRPमंद है तो हो सकता है उनकी आलोचना भी publicity stunt हो| कोशिश बस इतनी है कि तालियों की गूँज में भविष्य के नुस्खे गुम न हो जाएँ, विकास की बातें बस कागजों और आंकड़ों में न सिमट जाएँ, राज्य का सुशासन अखबारों में कम सड़कों पर ज्यादा दिखे|
मेरी तो शुभकामनाएं हैं कि नीतीश की सरकार तीस की हो पर उन तीस सालों में वो बिहार को देश से तीस साल आगे ले जाएँ तो उनकी नीति और उनकी कृति की असली जय जयकार होगी|