Tuesday, September 27, 2011

नीतीश की जय जयकार पर नहीं सुधरा बिहार


दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहरों में बैठे मीडिया के धुरंधरों को बिहार का बेहतर होना बड़ा रोमांटिक लगता है और उनके लिए TRP के अलावा इसके और भी फायदे हैं| बिहार की so-called बेहतरी बड़े शहरों में safety की एक फीलिंग देती है| कुछ वैसे ही जैसे अमरीका वालों को पाकिस्तान के stable होने पर बेहतर नींद मयस्सर होती है| 

घुप्प अँधेरे में किसी के दिया जला देने पर जैसा शोर मचता हो कुछ वैसा ही नीतीश की सरकार के साथ बिहार में हो रहा है| और शोर बड़े longlasting हैं क्यूंकि इंडियन मीडिया की चमत्कारों में जबरदस्त रूचि है| बिहार में बीते पांच सालों में जो हुआ है वह निश्चित तौर पर चमत्कार है: लालू के बिहार के लिए, न मेरे लिए और न ही सामान्य बिहार के लिए| किसी भी दूसरे राज्य के लिए ये सब किया-धरा शायद सामान्य की श्रेणी में भी न आये| मैं नीतीश कुमार का आलोचक तो नहीं पर देश के नेताओं की अदूरदर्शिता का अभ्यस्त हूँ| यह दुःख की बात  है कि डेमोक्रेसी के इतने लम्बे नाटक में  इस देश ने ऐसे बहुत कम किरदार देखे हैं जो चुनाव की जीत और मीडिया की प्रीत के आगे सोच पाते हों| मुझे डर है की नीतीश कुमार भी उसी बहुमत का हिस्सा न बन जाएँ|


कहाँ है ये नया बिहार?

अपने एक वर्ष के बिहार प्रवास में मैंने उस बिहार को ढूँढने की बहुत कोशिश जो आजकल अखबारों में और टीवी पर दिखने लगा है, पर मुझे मिला वही पुराना लालू का बिहार minus अपराध और भय| आज भी बिहार में सडकें और फसलें इन्द्र देवता की कृपा के भरोसे हैं: कहीं थोड़ी बहुत अच्छी सडकें हैं भी तो अनाज सुखाने और बैठक लगाने के काम आती हैं| राजधानी पटना में सड़कों का हाल जो था कमोबेश वही है, हाँ आजकल खैनी मसलते हुए पुलिसवाले ज्यादा नज़र आते हैं| बिहार की सड़कों पर दो चार दिन सफ़र करें तो आपको ये भी पता चलेगा कि सडकें अच्छी हो तो इससे मवेशियों और पैदल चलने वालों को कितनी सुविधा होती है और सडकों पर गाड़ियों के चलने से उन्हें कितनी असुविधा होती है | इन्ही बातों को ध्यान में रखते हुए माननीय लालू जी ने अपने कार्यकाल में गाडी वालों पर रंगदारी टैक्स का प्रचलन शुरू किया था| विश्वास करिए मेरा, आज भी बिहार की सड़कों पर कई लालू कई रूपों में नज़र आते हैं| 


ए शिवानी! ये कैसी राजधानी?

राजधानी पटना में FM channels तो खूब व्यवसाय कर रहे हैं पर उनके prime time के anchors बड़े confused रहते हैं कि सुनने वालों को ये बताएं कि जाम कहाँ है या फिर ये कि कहाँ नहीं है| चूंकि VIPs के लिए सड़क खाली कर दी जाती है तो सब ठीक हीं है| बाकी शहरों का हाल बता पाना मुमकिन नहीं है तो मैं अगले मुद्दे पर चलता हूँ| माहौल आज भी लालू एरा का बना हुआ कि चूंकि शहर में रहने वाला हर आदमी गरीब है अतएव तरजीह सिर्फ उन्ही की सुविधाओं को दी जायेगी| रिक्शे, shared ऑटो और भीड़ भरी बसों से आप सफ़र नहीं कर पाएं तो औने-पौने दामों पर taxi और reserved ऑटो आपको ढूँढने पर मिल सकते हैं| पूरे शहर में रेड lights काम नहीं करतीं हैं पर traffic को हाथ देकर कण्ट्रोल करने वाले आपको हर कहीं मिल जायेंगे| ये एकमात्र सिटी है पूरे विश्व में जहाँ traffic control का काम PPP (Public Private Partnership) से चल रहा है| रेलवे स्टेशन और एअरपोर्ट में competition इस बात का है कि कौन ज्यादा substandard है देश के अन्य शहरों के मुकाबले| 


कराहती शिक्षा व्यवस्था

शिक्षा व्यवस्था इतनी लचर है कि इसे अशिक्षा व्यवस्था कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी| स्कूलों में मास्टर जी आज भी सिर्फ हाजिरी बनाने ही आते हैं, अंतर इतना है कि जो काम पहले घर बैठे हो जाता था अब उसके लिए उन्हें आना पड़ता है| 'सरकार हर महीने पगार देकर जो एहसान करती है उसके लिए इतना तो बनता है भाई|' tution के मास्टर गाँव-गाँव में रोज़ पढ़ाने के नाम पर धंधा चला रहे हैं| क्या पढ़ा रहे हैं और कैसे पढ़ा रहे हैं इस तक बात पहुँचने में एक अरसा लग जाएगा| कॉलेज तो बस admission और डिग्री के लिए हैं| परीक्षाओं में खुल्लमखुल्ला नक़ल तो बंद हो गयी है पर असल माहौल अब भी बरक़रार है| छात्र कॉलेज जाते नहीं प्रोफेसर पढ़ाते नहीं| हाँ, graduation क़ी डिग्री में अब पांच साल क़ी बजाये साढ़े तीन साल ही लगते हैं| Higher education के लिए तो बिहार से बाहर जाना ही एकमात्र विकल्प है|


कमजोर प्रशासनिक मैनेजमेंट 

जो लोग नीतीश कुमार के प्रधानमंत्री बनने क़ी बात करते हैं वो ये भूल जाते हैं कि नीतीश कुमार रेल मंत्री रह चुके हैं| अगर उनका नेतृत्व इतना ही कुशल और सक्षम था तो प्रधानमंत्री क़ी कुर्सी का रास्ता सीधा वहीँ से जाता था| बिहार का byepass क्यूँ? बिहार में अब तक NDA की सरकार ने जो किया है वो करना एक elected govt के लिए औपचारिकता मात्र है| अब यहाँ से अगर आगे बिहार को एक विकसित राज्य बनाने में नीतीश कुमार सफल होंगे तो उनके नेतृत्व और व्यक्तित्व को ऐतिहासिक मायने मिलने चाहिए| दुर्भाग्यवश सरकारी policy अब तक तो vote बैंक से development तक नहीं पहुँच पायी है| 



जोर वाहवाही लूटने पर न हो 

जब लोगों का living standard पिछड़े अफ़्रीकी देशों की याद दिलाता हो और औद्योगीकरण शून्येतर हो तो जोर infrastructure के विकास पर और सख्त सुधारों पर होना चाहिए, मीडिया को लुभाने वाले विधेयकों और मसीहाई स्कीमों पर नहीं| जब ग्लोब के दूसरे हिस्से बुल्लेट ट्रेन के पीछे लगे हों तो गाँव की लड़कियों में साइकिल बाँट कर खुश होना cheap लगता है| जब देश के दूसरे राज्य Information Technology और industrialization के दम पर दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहे हों तो किसानों के लिए बीज-खाद का राग अलापना बंद होना चाहिए| किसान-किसान के गीत गाकर आप देश की communist मीडिया को तो रिझा लेंगे पर दुनिया के कोने कोने में जा बसे युवा talent को न तो बुला पायेंगे और न जाने से रोक पायेंगे| पीठ ठोंकने वाली मीडिया और सरकार ये समझे कि मेधा का पलायन money का पलायन है|


नीतीश कुमार की प्रशंसा अगर TRPमंद है तो हो सकता है उनकी आलोचना भी publicity stunt हो| कोशिश बस इतनी है कि तालियों की गूँज में भविष्य के नुस्खे गुम न हो जाएँ, विकास की बातें बस कागजों और आंकड़ों में न  सिमट जाएँ, राज्य का सुशासन अखबारों में कम सड़कों पर ज्यादा दिखे|
मेरी तो शुभकामनाएं हैं कि नीतीश की सरकार तीस की हो पर उन तीस सालों में वो बिहार को देश से तीस साल आगे ले जाएँ तो उनकी नीति और उनकी कृति की असली जय जयकार होगी| 

Saturday, September 17, 2011

India: A Country of Beggars

On a family trip to Rajsthan in my adolescence, i wondered why some foreigners were giving 100 Rupee notes to beggars to pose for some quick shots. The scene is still fresh in my mind and now i wonder why dint they opt for the big beggars who sit in most of Indian offices. That must have been more amusing for the better quarter of the globe.

The huge pool of these real beggars have consistently eaten away the country's economy and made big holes in our development budget. Due to their in-built tendencies and insatiable hunger for illicit money, we find pseudo beggars on our streets who are beggars by force, not by choice. In recent past, we have seen a lot of shouting at politicians and blaming the system for everything. I would just like to highlight that a big part of this returns to us: we, the people!


What about the educated class?


Amidst all the hullabaloo about the illiterate, uneducated politicians, i would like to raise some questions to the educated people, mostly middle class people. Don't you think that what's happening to you with regard to corruption is very similar to whats happening to Pakistan with regard to Taliban. The whole institution of corruption has thrived with your support all these years. Next, isn't it our character to adjust with the system and tamely oblige to the traditions and customs? Isn't it 'fine' to take advantage of everything without thinking what is right and wrong?

You can see it in the number of fake bills produced for reimbursement in corporate world. Everyone creates logical support for his pseudo morality. What the middle class does in day-to-day life is miniature form of what our ministers and bureaucrats do on a bigger scale. I know people in our society react very strongly when faced with such uncomfortable questions. The whole system unites to defend itself on flimsy grounds once you show it to be corrupt. I have seen this in one of the most prestigious institution in India- IIT! From student bodies to institute management, no one minds some extra bucks and undue advantage of his position coming his way. A couple of hostel council members once flew to Delhi and then traveled to Meerut to buy a couple of cricket bats for their hostels' cricket team at IIT Kharagpur! If it can happen in IITs then whats so funny about Mr Lalu Prasad getting buffaloes transported on scooters! Ultimately everyone is doing it for extra bucks. If it's government officials, its paap. But, when  its in day-to-day life: ' itna to chalta hai'. Corruption is corruption. There is no such thing as big corruption or small corruption. Taking 10 Rs more is also corruption. This is the seed.


Civil society is responsible


The likes of Arvind Kejriwal and Kiran Bedi have to take so much pain because everyone else who was in a position to do something, chose to live in the comforts that high government posts offered them. May be, they will end up suffering more than what they are able to achieve because the civil society, in general, is indifferent. A few patches here and there are voicing support but none willing to sacrifice.


We are so poor we can sell anything

Everyone seems to be living with a feeling of having a royal descent. Its all about chance: once they get it in the form of a government job or position of power, they make full use of it to make as much money as they can. Not a wonder that people say: "Corruption is a high profit, low risk business in India." The moment they get a chance, they behave like Emperors! The Babus and Netas need all the privileges and luxuries that they need not pay for! In lieu, honesty is on sale. High degree of moral poverty.



Its incorporated in the system

An IAS officer, a Mantri who is handling decisions involving crores comes from modest backgrounds and has  legal earnings of 30-40 thousands. Where comes the question of survival of integrity? The system must provide him enough strength to counter the crusades against his integrity.


The typical middle class mindset

Voices raised are least encouraged. The mindset was on exhibition in Radhika Tanwar case and Jessica Lall case. Facebook and twitter can inspire the middle class to join candle light vigils against corruption at India Gate and other places. But, when it comes to raising an alarm or being an eye-witness, it doesn't seem to be a part of revolution. There is no sense of heroism in refusing the TTE his illegal fees and asking him for the official receipt and pay the genuine. Instead there is sense of heroism in getting it done in 100 bucks when it might have costed 300!

The reality is that we are too casual about everything. Someone will come and take care of everything. We are driven by the mindset that there lies a 'Taaranhaar' ahead so why bother? Lets lead our normal, comfortable lives and leave it for others to sacrifice.

Unless we take charge of everything at hand, things will not change.


Solution: effective education and quality leadership

My dear countrymen! I would just be creating a false sense of comfort if I say that Lokpal Bill will be able to deal a significant blow to the monster. The reality is that the solution lies elsewhere. Even the first powerful movement against corruption owes credit to education, to awareness.


Its very important that people shed their ignorance and become concerned and hence aware about their society, their state, their nation. If one feels safe in the sofa watching sops, he will be paying the price for his indifference some day. The country needs vigilant citizens to increase the accountability of the system. The nation reckons motivated people to take up the role to lead the nation. The day is not a distant dream when we will feel it before we say 'Mera Bharat Mahaan', if everyone of us becomes Anna for 5-10 minutes everyday. One will not need to become Anna for his whole life then! 




Background Music: Hum me hai hero