मेरे अन्ना! मत हो अधीर
रामलीला फिर से लौटेगी भीड़
आज़ादी की पहली उफान
को जब लगे थे नब्बे साल
दूसरी लहर चंद महीनों
में भला कैसे पाएगी तीर?
गाँधी लड़े थे गोरों से
तुम लड़ रहे चोरों से
तब लड़े थे स्वराज को
आज तरसे सुराज को
समझो देश की चिंता पर
जब वोटों की ममता है भारी
संसद की प्रभुसत्ता पर
इस नागिन ने कुंडली मारी
लोकतंत्र के शीर्ष पर
जब चल रही हो चमचेबाज़ी
तो पुकार है लम्बे युद्ध की
जन जन को करने प्रबुद्ध की
गाँधी को फिर से जीना होगा
अपमान-विष पीना होगा
to be continued....