Composition circa 1997 after going through National Book Trust's booklet on Gandhiji.
Kindly don't mind the level of poem as it was crude emotional expression of a young heart.
लालकिले पर जब तिरंगा फहराया था
भारत में स्वतंत्रता का परचम लहराया था
स्वतंत्र होने की ख़ुशी में हम पागल थे
खूब पटाखे छोड़े हमने, हर्षोल्लास के कायल थे
तुम्हारा ख्याल न आया उस वक़्त हमें
इतना झूमे थे, नाचे थे, ख़ुशी में खोये थे
बापू जब तुम रोये थे
हम अचेतन हो सोये थे
हिंदुस्तान में स्वराज तुम्हीं ने लाया था
सही मायने में स्वतंत्रता का अहसास कराया था
सर्वस्व दान कर अपना तुमने लड़ी ये लड़ाई थी
बिना ढाल, खड्ग के आजादी हमें दिलाई थी
फिर भी, अपने, सगों के देश छोड़ जाने के विरह में
१५ अगस्त '४७ को बिरला हाउस में
बापू जब तुम रोये थे
हम अचेतन हो सोये थे
आपको पुण्यतिथि पर
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