Friday, November 24, 2006

मेरा परिचय

जिन्दगी को पैमानों में नही जीता हूँ
पीता हूँ, पर जिन्दगी की शराब पीता हूँ।

जो कहता हूँ किताबों से नहीं सीखा
खुद अपना कुराण, खुद अपनी गीता हूँ।

जो कह दिया उससे मुर्दे सा चिपकता नहीं,
पर वादों से मेरा डग कभी डिगता नहीं।


जिन्दगी की मौजों में हर पल डूबता हूँ
फिर साहिल पर बैठ खुद को ढूंढता हूँ।

कल कहाँ जाऊँगा, क्या पाऊँगा, सोचकर क्या?
स्वर्ग मान यहीं, इन्द्र की सभा सजाता हूँ।

इन्सां के
से जीता है खुदा उसका,
मैं मोहब्बत से खुदा को इन्सां बनाता हूँ।

जो कल मिट गया मैं झूठ के निशां मिटाते,
रहे अमर जो, सच का वो मकां बनाता हूँ।

2 comments:

  1. "इन्सां के भय से जीता है खुदा उसका,
    मैं मोहब्बत से खुदा को इन्सां बनाता हूँ"

    ghazab dha rahe hain Thakur saab... ek ke baad ek prakshepashtra chhod rahe hain. mere khayal se agar aap apna ye "parichay" zara pehle de dete to fir aapke "rejected maal" ban ne ka koi scene hi nahi tha ;)

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  2. Khuda jeeta (wins) bhi hai Insa ke bhai se aur Jita (Lives) bhi hai... jai ho

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