तेरी यादों में ख़ोए रातों को अक्सर सो नही पाए,
कभी पलकों से तेरी झलकों को हम खो नहीं पाए,
जमाने को ख्वाहिश थी हमें अपना बनाने की
हमारी ख्वाहिशें तुम तक, तुम्हारे हो नहीं पाए।
मोहब्ब्त है तुम्ही से, पर कहाँ हिम्म्त है कहने की,
यादों के भँवर दिल मे- कहाँ दिक्कत है सहने की,
डर इस बात का है कि तू कहीं इनकार न कर दे
खुशफ़हमी का मज़ा कुछ और तुझे अपना समझने की।
एक शिकन अकेलेपन की…
महफ़िल में साथ देनेवाले कम ही नहीं होते,
औ तन्हाई में अब मयस्सर गम भी नहीं होते।
औ तन्हाई में अब मयस्सर गम भी नहीं होते।
nice rhythm.....nice feelings....good choice of words....achchha hai, bahut achchha hai....
ReplyDeletewah...wah...
ReplyDeletekya poem hai bhai..
lage raho vivek bhai...
Shukriya Kashivar!
ReplyDeleteAbhi dude!
thanks.. laga rahunga jab tak tumhari wah-wahi milti hai aur wo nahi nahi milti...:)